पत्थलगांव (दिपेश रोहिला) । वर्तमान में जल को भले ही देवता माना जाता हो मगर अब बोतलों में बेचा जाने लगा यही है मानव की सबसे बड़ी मूर्खता है। कभी समय था जब लोग जल ही जीवन है कहते हुए नदियों को माँ मानकर पूजते थे लेकिन आज वही मानव RO और बॉटलवॉटर के युग में जी रहा है, जहाँ पानी अब पूजा नहीं प्रोडक्ट बन गया है। पहले जहाँ तालाब, कुएँ और पोखर जीवन का आधार थे, आज वहाँ मॉल, वाटर पार्क और स्विमिंग पूल चमक रहे हैं। गाँव के बोरवेल सूख गए पर शहर के मॉल में फव्वारे नाच रहे हैं। हर नल की टपकती बूँद जैसे पुकारती है कि थोड़ा तो बचा लो मुझे, पर इंसान सोचता है सरकार है ना।
विज्ञान बढ़ा, टंकियाँ ऊँची हुईं, पर इंसानी सोच छोटी रह गई है। जहाँ कभी लोग तालाब भरने की पूजा करते थे आज फूल पार्टी के लिए छुट्टी लेते हैं, बच्चे स्कूल में जल संरक्षण की कविता सुनाते हैं और घर में नल खुला छोड़ जाते हैं। वहीं अब पानी ऐप से आता है डिलीवरी बॉय से जीवन माँगा जा रहा है, इंसान खुद को स्मार्ट कहता है मगर बिन पानी के वही सबसे बड़ा मूर्ख साबित होगा। हर साल “विश्व जल दिवस” पर भाषणों की बाढ़ आती है पोस्टर लगते हैं, दीवारें रंगी जाती है लेकिन दूसरे ही दिन नालियों में नदियाँ बहती हैं। जल संकट अब कोई भविष्य की चेतावनी नहीं बल्कि सभ्यता का स्थायी सदस्य बन चुका है। खेत सूख रहे हैं पर एक्वा स्लाइड चल रही है टंकी ऊँची है, पर नैतिकता नीचे गिर गई है। मानो नदियाँ अब पुकारती हैं कि मेरा स्थान अब गटर बन चुका है। जब इंसान को जल की कमी महसूस होगी, तब उसे अपने पसीने का नमकीन स्वाद याद आएगा जो उसकी नीयत जैसा ही होगा।
मध्यम वर्ग जो हर एक एक बूँद के लिए जूझता और तरसता है, वही जल का असली महत्व जानता है। अब जल है तो कल है का नारा पोस्टरों तक ही सिमट गया है, असलियत तो यह है कि अब जल है तो बिल है अधिक सटीक लगता है। धरती की नसें सूख रही है और हम बाथरूम के शॉवर में जल बहा रहे हैं। इंसान अगर अब भी नहीं चेता तो आने वाली पीढ़ी अपने सोशल मीडिया पर लिखेगी “जब धरती पर पानी हुआ करता था”..
"हर बूंद में है भविष्य की आस" –
जल जीवन का आधार है पर आज यही आधार सबसे बड़ी चिंता का विषय बन गया है, धरती पर जल प्रचुर मात्रा में है मगर पीने योग्य जल तीव्रता से कम हो रहा है। बढ़ती जनसंख्या और अंधाधुंध दोहन के कारण पानी को संकट के कगार पर लाने की दिशा व्यक्ति आगे चल रहा है। ऐसे में "वाटर हार्वेस्टिंग" यानी वर्षा जल संचयन ही भविष्य की प्यास बुझाने का उपाय है, यह केवल तकनीक नहीं बल्कि जिम्मेदारी और सोच का बदलाव है, हर घर, हर छत, हर खेत वर्षा की हर बूंद को सहेज सकता है। जब बूंद-बूंद सहेजी जाएगी तभी जल का सागर बचेगा, जिससे भूजल स्तर में वृद्धि होगी और सूखे की समस्या कम होगी इससे किसानों के चेहरे पर हमेशा मुस्कान छा सकती है,जिससे खेतों में सिंचाई सुचारू रहती है और फसल उत्पादन बढ़ता है। ग्रामीण इलाकों में यह किसानों के लिए जीवनरेखा साबित होगी। साथ–साथ ही शहरी इलाकों में यह प्रणाली जल संकट का स्थायी समाधान भी बन सकता है, क्योंकि वर्षा जल का संचयन नालों और सड़कों पर बहकर व्यर्थ जाने से रोकता है।
वहीं इससे बाढ़ का खतरा भी घटता है और पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है घरों में संग्रहित जल पीने, धोने, सफाई और अन्य कार्यों में उपयोगी साबित होता है इससे न केवल जल बचता है बल्कि बिजली और आर्थिक संसाधनों की भी बचत होती है। जल संचयन अपनाने वालों को जल की कमी से कभी जूझना नहीं पड़ेगा। यह पर्यावरण संरक्षण और आत्मनिर्भरता दोनों की दिशा में एक शानदार कदम है। सरकारें योजनाएँ बना सकती हैं, लेकिन वास्तविक परिवर्तन जनभागीदारी से ही संभव है, हर नागरिक को वर्षा जल संग्रहण को जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा, स्कूलों और पंचायतों में जल बचत को संस्कार के रूप में जोड़ा जाना चाहिए और "वाटर हार्वेस्टिंग" से नदियाँ पुनर्जीवित होंगी तालाब भरे रहेंगे और धरती मुस्कुराएगी। इससे समाज में स्वास्थ्य, स्वच्छता और समृद्धि तीनों का संचार होगा और जल संरक्षण केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं बल्कि मानव अस्तित्व का प्रश्न है। यदि आज हम हर बूंद को सहेजेंगे तो आने वाली पीढ़ियाँ सुखमयी जीवन को महसूस कर पाएँगी, इसलिए अब भी वक्त है कि हम सब मिलकर कहें “जल बचेगा, तभी कल बचेगा।” वरना आने वाली पीढ़ी अपने सोशल मीडिया पर लिखेगी “जब धरती पर पानी हुआ करता था”..

